शवासन
क्या आप अपनी मनःशक्ति को बढ़ाना चाहते हैं ? हाँ तो आप नित्य शवासन का अभ्यास कीजिए।
परिचयः
इस आसन की पूर्णावस्था में शरीर की स्थिति मृतक व्यक्ति जैसी हो जाती है, अतः इसे शवासन कहते हैं।
लाभः
अन्य आसन करने के बाद में जो तनाव होता है, उसको दूर करने के लिए अंत में तीन से पाँच मिनट तक शवासन करना चाहिए। अन्य समय में भी इसे कर सकते हैं। इससे रक्तवाहिनियों में रक्तप्रवाह तीव्र होने से शारीरिक, मानसिक थकान उतर जाती है। इस आसन के द्वारा स्नायु एवं मांसपेशियों का शिथिलीकरण होता है, जिससे उनकी शक्ति बढ़ती है।
विधिः
सीधे लेट जायें, दोनों पैरों को एक दूसरे से थोड़ा अलग कर दें व दोनों हाथ भी शरीर से अलग रहें। पूरे शरीर को मृतक व्यक्ति के शरीर की तरह ढीला छोड़ दें। सिर सीधा रहे व आँखें बंद। हाथ की हथेलियाँ आकाश की तरफ खुली रखें।मानसिक दृष्टि से शरीर को पैर से सिर तक देखते जायें। बारी-बारी से एक-एक अंग पर मानसिक दृष्टि एकाग्र करते हुए भावना करें कि वह अंग अब आराम पा रहा है। ऐसा करने से मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। ध्यान रहे कि शरीर के किसी भी अंग में कहीं भी तनाव न रहे। शिथिलीकरण की प्रक्रिया में पैर से प्रारंभ कर के सिर तक जायें अथवा सिर से प्रारंभ कर के पैर तक भी जा सकते हैं। जहाँ से आरम्भ किया हो वहीं पुनः पहुँचना चाहिए।
ध्यान दें-
शवासन करते समय निद्रित न होकर जाग्रत रहना आवश्यक है। फिर श्वासोच्छ्वास पर ध्यान देना है। शवासन की यह मुख्य प्रक्रिया है। श्वास और उच्छवास दीर्घ व सम रहें।
रोगों में लाभः
नाड़ीतंत्र की दुर्बलता दूर होती है। इस आसन को करने से हृदय की तकलीफों व मानसिक रोगों में शीघ्र आराम प्राप्त होता है।
समयः
2-3 आसन के बाद 1 मिनट तक शवासन करना चाहिए। सभी आसनों के अंत में 10 से 15 मिनट तक करें।