संस्कृति रक्षक प्राणायाम
गहरा श्वास लेकरर ॐकार का जप करें, आखिर में ‘म’ को घंटनाद की नाईं गूँजने दें। ऐसे 11 प्राणायाम फेफड़ों की शक्ति बढ़ायेंगे, रोगप्रतिकारक शक्ति तो बढ़ायेंगे साथ ही वातावरण में भी भारतीय संस्कृति की रक्षा में सफल होने की शक्ति अर्जित करने का आपके द्वारा महायज्ञ होगा।
हो सके तो सुबह 4 से 5 बजे के बीच करें। यह स्वास्थ्य के लिए और सभी प्रकार से बलप्रद होगा। यदि इस समय न कर पायें तो किसी भी समय करें पर करें अवश्य। कम से कम 11 प्राणायाम करें, ज्यादा कितने भी कर सकते हैं। अधिकस्य जपं अधिकं फलम्।
विधिः सुबह उठकर थोड़ी देर शांत हो जाओ, भगवान के ध्यान में बैठें । ॐ शांति…. ॐ आनन्द…. करते करते आनंद और शांति में शांत हो जायें । सुबह की शांति प्रसाद की जननी है, सदबुद्धि की जननी है । फिर स्नान आदि करके खूब श्वास भरो, त्रिबन्ध करो-पेट को अंदर खींचो, गुदाद्वार को अंदर सिकोड़ लें, ठुड्डी को छाती से लगा लें । मन में संस्कृति-रक्षा का संकल्प दोहराकर भगवान का नाम जपते हुए सवा से डेढ़ मिनट श्वास रोके रखें । फिर श्वास छोड़ें । श्वास लेते और छोड़ते समय ॐकार का मानसिक जप करते रहें । फिर 50 सैकेंड से सवा मिनट तक श्वास बाहर रोक सकते हैं । मन में ॐकार या भगवन्नाम का जप चालू रखें । शरीर में जो भी आम (कच्चा, अपचित रस) होगा, वायुदोष होगा, वह खिंच के जठर में स्वाहा हो जायेगा । वर्तमान की अथवा आने वाली बीमारियों की जड़ें स्वाहा होती जायेंगी । आपकी सुबह मंगलमय होगी और आपके द्वारा मंगलकारी परमात्मा मंगलमय कार्य करवायेगा । आपका शरीर और मन निरोग तथा बलवान बन के रहेगा ।