त्रिबन्ध प्राणायाम
ध्यान दें- विशेष ध्यान देने की बात है कि मूलबंध (गुदा का संकोचन करना), उड्डीयानबंध (पेट को अंदर की ओर सिकोड़कर ऊपर की ओर खींचना) एवं जालंधरबंध (ठोढ़ी को कंठकूप से लगाना) – इस तरह से त्रिबंध करके यह प्राणायाम करने से अधिक लाभदायक सिद्ध होता है ।
प्रातःकाल ऐसे 5 से 10 प्राणायाम करने का प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए ।
मूलबन्ध
शौच स्नानादि से निवृत्त होकर आसन पर बैठ जायें । बायीं एड़ी के द्वारा सीवन या योनि को दबायें । दाहिनी एड़ी सीवन पर रखें । गुदाद्वार को सिकोड़कर भीतर की ओर ऊपर खींचें । यह मूलबन्ध कहा जाता है ।
लाभः मूलबन्ध के अभ्यास से मृत्यु को जीत सकते हैं । शरीर में नयी ताजगी आती है । बिगड़ते हुए स्वास्थ्य की रक्षा होती है । ब्रह्मचर्य का पालन करने में मूलबन्ध सहायक सिद्ध होता है । वीर्य को पुष्ट करता है, कब्ज को नष्ट करता है, जठराग्नि तेज होती है । मूलबन्ध से चिरयौवन प्राप्त होता है । बाल सफेद होने से रुकते हैं ।
अपानवाय ऊर्ध्वगति पाकर प्राणवायु के सुषुम्ना में प्रविष्ट होता है । सहस्रारचक्र में चित्तवृत्ति स्थिर बनती है । इससे शिवपद का आनन्द मिलता है । सर्व प्रकार की दिव्य विभूतियाँ और ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं । अनाहत नाद सुनने को मिलता है । प्राण, अपान, नाद और बिनदु एकत्रित होने से योग में पूर्णता प्राप्त होती है ।
उड्डीयान बन्ध
आसन पर बैठकर पूरा श्वास बाहर निकाल दें । सम्पर्णतया रेचक करें । पेट को भीतर सिकोड़कर ऊपर की ओर खींचें । नाभि तथा आँतें पीठ की तरफ दबायें । शरीर को थोड़ा सा आगे की तरफ झुकायें । यह है उड्डीयानबन्ध ।
लाभः इसके अभ्यास से चिरयौवन प्राप्त होता है । मृत्यु पर जय प्राप्त होती है । ब्रह्मचर्य के पालन में खूब सहायता मिलती है । स्वास्थ्य सुन्दर बनता है । कार्यशक्ति में वृद्धि होती है । न्योलि और उड्डीयानबन्ध जब एक साथ किये जाते हैं तब कब्ज दुम दबाकर भाग खड़ा होता है । पेट के तमाम अवयवों की मालिश हो जाती है । पेट की अनावश्यक चरबी उतर जाती है ।
जालन्धरबन्ध
आसन पर बैठकर पूरक करके कुम्भक करें और ठोड़ी को छाती के साथ दबायें । इसको जालन्धरबन्ध कहते हैं ।
लाभः जालन्धरबन्ध के अभ्यास से प्राण का संचरण ठीक से होता है । इड़ा और पिंगला नाड़ी बन्द होकर प्राण-अपान सुषुम्ना में प्रविष्ट होते हैं । नाभि से अमृत प्रकट होता है जिसका पान जठराग्नि करता है । योगी इसके द्वारा अमरता प्राप्त करता है ।
पद्मासन पर बैठ जायें । पूरा श्वास बाहर निकाल कर मूलबन्ध, उड्डीयानबन्ध करें । फिर खूब पूरक करके मूलबन्ध, उड्डीयानबन्ध और जालन्धरबन्ध ये तीनों बन्ध एक साथ करें । आँखें बन्द रखें । मन में प्रणव (ॐ) का अर्थ के साथ जप करें ।
इस प्रकार प्राणायाम सहित तीनों बन्ध का एक साथ अभ्यास करने से बहुत लाभ होता है और प्रायः चमत्कारिक परिणाम आता है । केवल तीन ही दिन के सम्यक अभ्यास से जीवन में क्रान्ति का अनुभव होने लगता है । कुछ समय के अभ्यास से केवल या केवली कुम्भक स्वयं प्रकट होता है ।