केवली कुम्भक प्राणायाम
केवल या केवली कुम्भक का अर्थ है रेचक-पूरक बिना ही प्राण का स्थिर हो जाना । जिसको केवली कुम्भक सिद्ध होता है उस योगी के लिए तीनों लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता । कुण्डलिनी जागृत होती है, शरीर पतला हो जाता है, मुख प्रसन्न रहता है, नेत्र मलरहित होते हैं । सर्व रोग दूर हो जाते हैं । बिन्दु पर विजय होती है । जठराग्नि प्रज्वलित होती है ।
केवली कुम्भक सिद्ध किये हुए योगी की अपनी सर्व मनोकामनायें पूर्ण होती हैं । इतना ही नहीं, उसका पूजन करके श्रद्धावान लोग भी अपनी मनोकामनायें पूर्ण करने लगते हैं ।
जो साधक पूर्ण एकाग्रता से त्रिबन्ध सहित प्राणायाम के अभ्यास द्वारा केवली कुम्भक का पुरूषार्थ सिद्ध करता है उसके भाग्य का तो पूछना ही क्या? उसकी व्यापकता बढ़ जाती है । अन्तर में महानता का अनुभव होता है । काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर इन छः शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है । केवली कुम्भक की महिमा अपार है ।