गजकरणी
विधिः करीब दो लिटर पानी गुनगुना सा गरम करें । उसमें करीब 20 ग्राम शुद्ध नमक घोल दें । सैन्धव मिल जाये तो अच्छा है । अब पंजों के बल बैठकर वह पानी गिलास भर-भर के पीते जायें । खूब पियें । अधिकाअधिक पियें । पेट जब बिल्कुल भर जाये, गले तक आ जाये, पानी बाहर निकालने की कोशिश करें तब दाहिने हाथ की दो बड़ी अंगुलियाँ मुँह में डाल कर उल्टी करें, पिया हुआ सब पानी बाहर निकाल दें । पेट बिल्कुल हल्का हो जाये तब पाँच मिनट तक आराम करें ।
गजकरणी करने के एकाध घण्टे के बाद केवल पतली खिचड़ी ही भोजन में लें । भोजन के बाद तीन घण्टे तक पानी न पियें, सोयें नहीं, ठण्डे पानी से स्नान करें । तीन घण्टे के बाद प्रारम्भ में थोड़ा गरम पानी पियें ।
लाभः गजकरणी से एसिडीटी के रोगी को अदभुत लाभ होता है । ऐसे रोगी को चार-पाँच दिन में एक बार गजकरणी चाहिए । तत्पश्चात महीने में एक बार, दो महीने में एक बार, छः महीने में एक बार भी गजकरणी कर सकते हैं ।
प्रातःकाल खाली पेट तुलसी के पाँच-सात पत्ते चबाकर ऊपर से थोड़ा जल पियें । एसीडीटी के रोगी को इससे बहुत लाभ होगा ।
वर्षों पुराने कब्ज के रोगियों को सप्ताह में एक बार गजकरणी की क्रिया अवश्य करनी चाहिए । उनका आमाशय ग्रन्थिसंस्थान कमजोर हो जाने से भोजन हजम होने में गड़बड़ रहती है । गजकरणी करने से इसमें लाभ होता है । फोड़े, फुन्सी, सिर में गर्मी, सर्दी, बुखार, खाँसी, दमा, टी.बी., वात-पित्त-कफ के दोष, जिह्वा के रोग, गले के रोग, छाती के रोग, छाती का दर्द एवं मंदाग्नि में गजकरणी क्रिया लाभकारक है ।