अग्निसार क्रिया
अग्नाशय को प्रभावित करने वाली यह योग की प्राचीन क्रिया लुप्त हो गयी थी । घेरण्ड ऋषि पाचन-प्रणालि को अत्यधिक सक्रिय रखने के लिए यह क्रिया करते थे । इस क्रिया से अनेक लाभ साधक को बैठे-बैठे मिल जाते हैं ।
विधिः वज्रासन में बैठकर हाथों को घुटनों पर रखें । सामने देखें । श्वास बाहर निकाल कर पेट को आगे-पीछे चलायें । पेट को चलाते वक्त श्वास बाहर ही रोक रखें । जब आप पेट चलाते हैं तब कन्धों को न हिलायें । एक बार जब तक श्वास बाहर रोकी हुई है तब तक पेट चलाते रहें । एक बार श्वास छोड़कर करीब 20 से 40 बार पेट को अंदर बाहर करें, फिर पेट चलाना बंद करें और लँबी-गहरी श्वास लेना-छोड़ना शुरू करें । चार-पाँच बार लँबी गहरी श्वास लेने छोड़ने के बाद फिर से श्वास बाहर छोड़कर पेट को चलाने की इस क्रिया को 4-5 बार दोहरायें ।
लाभः अग्निसार क्रिया से पाचन सुचारू रूप से चलता है । साधना में अधिक देर तक बैठने के बाद भी अजीर्ण नहीं होता और पेट का मोटापन कम हो जाता है । पेट के अनेक विकार दूर हो जाते हैं जैसे कब्ज (कोष्ठबद्धता), अल्सर, गैसेस, डकारें आदि की शिकायतें बंद हो जाती हैं । पेशाब में जलन कम हो जाती है । बार-बार पेशाब का आना या बहुमूत्र का होना इस क्रिया से बंद हो जाता है । भूख अच्छी लगती है । अधिक देर बैठकर साधना करने वालों को अजीर्ण आदि नहीं होता है ।