ब्रह्ममुद्रा
ब्रह्ममुद्रा योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा है । ब्रह्मा के तीन मुख और दत्तात्रेय के स्वरूप को स्मरण करते हुए व्यक्ति तीन दिशा में सिर घुमाये ऐसी यह क्रिया है अतः इस क्रिया को ब्रह्ममुद्रा कहते हैं ।
विधिः वज्रासन या पद्मासन में कमर सीधी रखते हुए बैठें । हाथों को घुटनों पर रखें । कन्धों को ढीला रखें । अब गर्दन को सिर के साथ ऊपर नीचे दस बार धीरे-धीरे करें । सिर को अधिक पीछे जाने देवें । गर्दन ऊपर नीचे चलाते वक्त आँखें खुली रखें । श्वास चलने देवें । गर्दन को ऊपर नीचे करते वक्त झटका न देवें । फिर गर्दन को धीरे-धीरे दाँये-बाँये 10 बार चलाना चाहिए । गर्दन को चलाते वक्त ठौड़ी और कन्धा एक ही दिशा में लाने तक गर्दन तक घुमायें । इस प्रकार गर्दन को 10 बार दाँये-बाँये चलायें और अन्त में गर्दन को गोल घुमाना है । गर्दन को ढीला छोड़कर एक तरफ से धीरे-धीरे गोल घुमाते हुए 10 चक्कर लगायें । आँखें खुली रखें । फिर दूसरी तरफ से गोल घुमायें । गर्दन से धीरे-धीरे चक्कर लगायें । हो सके तो कान को कन्धों से लगायें । इस प्रकार ब्रह्ममुद्रा का अभ्यास करें ।
लाभः सिरदर्द, सर्दी-जुकाम आदि में लाभ होता है । ध्यान-साधना-सत्संग के समय नींद नहीं आयेगी । आँखों की कमजोरी दूर होती है । चक्कर बँद होते हैं । उल्टी, चक्कर, अनिद्रा और अतिनिद्रा आदि पर ब्रह्ममुद्रा का अचल प्रभाव पड़ता है । जिन लोगों को नींद में अधिक सपने आते हैं वे इस मुद्रा का अभ्यास करें तो सपने कम जाते हैं । ध्वनि-संवेदनशीलता कम होती है । मानसिक अवसाद (DEPRESSION) कम होता है । एकाग्रता बढ़ती है । गर्दन सीधी रखने में सहाय मिलती है ।