अपानवायु मुद्रा
विधि – अँगूठे के पास वाली पहली उँगली को अँगूठे के मूल में लगाकर अँगूठे के अग्रभाग की बीच की दोनों उँगलियों के अग्रभाग के साथ मिलाकर सबसे छोटी उँगली (कनिष्ठिका) को अलग से सीधी रखें। इस स्थिति को अपानवायु मुद्रा कहते हैं। अगर किसी को हृदयघात आये या हृदय में अचानक पीड़ा होने लगे तब तुरन्त ही यह मुद्रा करने से हृदयघात को भी रोका जा सकता है।
लाभः हृदयरोगों जैसे कि हृदय की घबराहट, हृदय की तीव्र या मंद गति, हृदय का धीरे-धीरे बैठ जाना आदि में थोड़े समय में लाभ होता है। पेट की गैस, मेद की वृद्धि एवं हृदय तथा पूरे शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर होती है। आवश्यकतानुसार हर रोज़ 20 से 30 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता