भारतीय संस्कृति के आधारभूत तथ्य
छः –
षड् दर्शन : सांख्या, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा (वेदांत) ।
षड् ऋतुएं : वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत ।
षट्सम्पत्ति : शम, दम, तितिक्षा, उपरति, श्रद्धा, समाधान ।
सात –
सप्त वार : सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, रवि ।
सप्त धातु : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र ।
सप्त रंग : लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, बैगनी ।
सप्त स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि ।
सप्त धान्य : गेंहू, जौ, चावल, चना, मूंग, उडद और तेल ।
सप्तर्षि : अंगिरा, वसिष्ठ, क्रतु, भृगु, मरीचि, पुलह, पुलत्स्य ।
सप्त चक्र : मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धाख्य, आज्ञा और सहस्त्रार ।
मोक्षदायिनी सप्त पूरियाँ : अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, उज्जैन और द्वारिका ।
सप्त ज्ञान-भूमिकाएँ : शुभेच्छा, विचारणा, तनुमानसा, सत्त्वापति, असंसक्ति, पदार्थाभाविनी, तुर्यगा ।
आठ –
अष्टसिद्धि: अणिमा (अति सूक्ष्म रूप धारण करने की सिद्धि), महिमा (इच्छानुसार अपना विस्तार करने की सिद्धि), गरिमा(इच्छानुसार शरीर का भार बढ़ाने की सिद्धि), लघिमा( लघुतम रूप धारण करने की सिद्धि), प्राप्ति( इच्छिछित वस्तु प्राप्त करने की सिद्धि), प्राकाम्य(सभी मनोरथ पूर्ण करने की सिद्धि), ईशित्व(सब पर शासन करने की सिद्धि), वशित्व(सबको वश करने की सिद्धि)।
अष्ट धातु: सोना, चांदी, तांबा, राँगा, पारा, लोहा, सीसा, जस्ता।
अष्टधा प्रकृति: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार।
अष्टांग योग: यम(अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह), नियम(शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर आराधना), आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और समाधि।
अष्ट सात्विक भाव: स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, कम्प, वैवर्णय, अश्रु, प्रलय।
अष्ट भाव: रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा(उपेक्षापूर्वक की जाने वाली घृणा), विस्मय।
अष्ट भेद: शीत, उष्ण, मृदु, कठोर, रुक्ष, स्निग्ध, हल्का, भारी।
आठ रस: श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अदभुत।
आठ प्रकार के मद: ज्ञान, प्रतिष्ठा, कुल, जाति, बल, धन-संपत्ति, तपश्चर्या, शरीर की सुंदरता का।
अष्ट गन्ध: चंदन, अगर, देवदारु, केसर, क्यूर, शैलज, जटामांसी, गोरोचन।
नौ –
नवधा भक्ति: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य व आत्मनिवेदन।
नवरस: श्रृंगार, करुण, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, विभत्स, अदभुत और शांत रस।
नव शक्ति: प्रभा, माया, जया, सूक्ष्मा, विशुद्धा, नन्दिनी, सुप्रभा, विजया व सर्वसिद्धिदा।
नव विष: वत्सनाभ, हारिद्रक, सक्तुक, प्रदीपन, सौ- राष्ट्रिक, श्रृंगक, कालकूट, हलाहल और ब्रह्मपुत्र।
नवनिधि(कुबेर की): पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व।
नवद्वार मनुष्य शरीर के: दो आंखे, दो कान, दो गुप्तेन्द्रियाँ और एक मुख।
नव दुर्गा: शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चित्रघण्टा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदा।
नवग्रह: सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नव कुमारी: कुमारिका, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, काली, चंडिका, शाम्भवी, दुर्गा और सुभद्रा।
नवरत्न: मोती, पन्ना, माणिक, गोमेद, हीरा, मूंगा, लहसुनियां, पुष्यराज और नीलम।
नौ गुण( मौन रहने के): किसी की निंदा नही होगी, असत्य बोलने से बचेंगे, किसी से वैर नही होगा, किसी से क्षमा नही मांगनी पड़ेगी, बाद में आपको पछताना नही पड़ेगा, समय का दुरुपयोग नही होगा, व्यर्थ कार्यों का बोझ नही बढ़ेगा, अपने वास्तविक ज्ञान की रक्षा होगी। अपना अज्ञान मिटेगा, अंतःकरण की शांति भंग नही होगी।
दस –
धर्म के दस लक्षणः धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध ।
दस दिशाएँ- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान, अधः, ऊर्ध्व ।
दस इन्द्रियाँ- पाँच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, जिह्वा, गुदा, जननेन्द्रिय), पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, नाक, कान, जिह्वा, त्वचा) ।
दस महाविद्याः काली, तारा, छिन्न मस्ता, धूमावती, बगलामुखी, कमला, त्रिपुरभैरवी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी ।
दश दिक्पालः दसों दिशाओं की रक्षा करने वाले दस देवता – पूर्व दिशा के इन्द्र, अग्नि कोण के अग्नि, दक्षिण दिशा के यम, नैर्ऋत्य कोण के नैर्ऋत्य, पश्चिम दिशा के वरुण, वायव्य कोण के मरुत, उत्तर दिशा के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधः दिशा के रक्षक अनंत हैं ।
दशांग धूपः दस सुगन्धियों के मेल से बनने वाला एक धूप जो पूजा में जलाया जाता है । ये दस द्रव्य हैं – शिलारस, गुग्गुल, चंदन, जटामांसी, लोबान, राल, खस, नख, भीमसैनी कपूर और कस्तूरी ।
दश मूलः सरिवन, पिठवन, छोटी कटाई, बड़ी कटाई, गोखरू, बेल, पाठा, गम्भारी, गनियारी (शमी के समान एक काँटेदार वृक्ष) और सोनपाठा इन दस वृक्षों की जड़ें ।