अमिट पुण्य अर्जित करने का अवसर-पुरुषोत्तम मास
अधिक मास में सूर्य की सक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने से इसे ‘मल मास’ (मलिन मास) कहा गया है । स्वामीरहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया । इससे लोग इसकी घोर निंदा करने लगे ।
मल मास ने भगवान को प्रार्थना की, भगवान बोले- “मल मास नहीं, अब से इसका नाम पुरुषोत्तम मास होगा । इस महीने जो जप, सत्संग, ध्यान, पुण्य आदि करेंगे, उन्हें विशेष फायदा होगा । अंतर्यामी आत्मा के लिए जो भी कर्म करेंगे, तेरे मास में वह विशेष फलदायी हो जायेगा । तब से मल मास का नाम पड़ गया ‘पुरुषोत्तम मास’ ।”
विशेष लाभकारी
अधिक मास में आँवला और तिल के उबटन से स्नान पुण्यदायी है और स्वास्थ्य प्रसन्नता में बढ़ोतरी करने वाला है अथवा तो आँवला, जौ तिल का मिश्रण बनाकर रखो और स्नान करते समय थोड़ा मिश्रण बाल्टी में डाल दिया । इससे भी स्वास्थ्य और प्रसन्नता पाने में मदद मिलती है । इस मास में आँवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करना अधिक प्रसन्नता और स्वास्थ्य देता है ।
आँवले व पीपल के पेड़ को स्पर्श करने से स्नान करने का पुण्य होता है, सात्त्विकता और प्रसन्नता की बढ़ोतरी होती है । इन्हें स्नान करने के बाद स्पर्श करने से दुगुना पुण्य होता है । पीपल और आँवला सात्विकता के धनी हैं ।
इस मास में धरती पर (बिस्तर बिछाकर) शयन व पलाश की पत्तल पर भोजन करे और ब्रह्मचर्य व्रत पाले तो पापनाशिनी ऊर्जा बढ़ती है और व्यक्तित्व में निखार आता है । इस पुरुषोत्तम मास को कई वरदान प्राप्त हैं और शुभ कर्म करने हेतु इसकी महिमा अपरम्पार है ।
अधिक मास में वर्जित
पुरुषोत्तम मास व चतुर्मास में नीच कर्मों का त्याग करना चाहिए । वैसे तो सदा के लिए करना चाहिए लेकिन आरम्भ वाला भक्त इन्हीं महीनों में त्याग करे तो उसका नीच कर्मों के त्याग का सामर्थ्य बढ़ जायेगा । इस मास में शादी-विवाह अथवा सकाम कर्म एवं सकाम व्रत वर्जित हैं । जैसे कुएँ, बावली, तालाब और बाग़ आदि का आरम्भ तथा प्रतिष्ठा, नवविवाहिता वधू का प्रवेश, देवताओं का स्थापन (देव-प्रतिष्ठा), यज्ञोपवीत संस्कार, नामकरण, मकान बनाना, नये वस्त्र एवं अलंकार पहनना आदि । इस मास में किये गये निष्काम कर्म कई गुना विशेष फल देते हैं ।
अधिक मास में करने योग्य
जप, कीर्तन, स्मरण, ध्यान, दान, स्नान आदि तथा पुत्रजन्म के कृत्य, पितृस्मरण के श्राद्ध आदि एवं गर्भाधान, पुंसवन जैसे संस्कार किये जा सकते हैं ।
देवी भागवत के अनुसार यदि आदि की सामर्थ्य न हो तो संतों-महापुरुषों की सेवा (उनके दैवी कार्य में सहभागी होना) सर्वोत्तम है । इससे तीर्थ, तप आदि के समान फल प्राप्त होता है । इस माह में दीपकों का दान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं । दुःख-शोकों का नाश होता है । वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है । इस मास में गीता के 15वें अध्याय का अर्थसहित प्रेमपूर्वक पाठ करना चाहिए । भक्तिपूर्वक सदगुरु से अध्यात्म विद्या का श्रवण करने से ब्रह्महत्याजनित पाप नष्ट हो जाते हैं तथा दिन प्रतिदिन अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है । निष्काम भाव से यदि श्रवण किया जाय तो जीव मुक्त हो जाता है ।
व्रत विधि
भगवान श्रीकृष्ण इस मास की व्रत विधि एवं महिमा बताते हुए कहते हैं- “इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवत्स्मरण करते हुए किया गया स्नान), दान, जप, होम, गुरु-पूजन, स्वाध्याय, पितृतर्पण, देवार्चन तथा और जो भी शुभ कर्म किये जाते हैं, वे सब अक्षय हो जाते हैं । जो प्रमाद से इस मास को खाली बिता देते हैं, उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्र्य पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है, इसमें संदेह नहीं ।
शंख की ध्वनि के साथ कपूर से आरती करें । ये न हों तो रूई की बाती से ही आरती कर लें । इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है । चंदन, अक्षत और पुष्पों के साथ ताँबे के पात्र में पानी रखकर भक्ति से प्रातःपूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें ।
पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्र्य, पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है । इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं ।
विधिवत सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात् । कुलं स्वकीयमुद्धृत्य मामेवैष्यत्यसंशयम् । ।
पुरुषोत्तम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभ कर्म करता है, वह निःसंदेह अपने समस्त परिवार के साथ मेरे लोक में पहुँचकर मेरा सान्निध्य प्राप्त कर लेता है ।