श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
मानो न मानो यह हकीकत है….
बुधवार का दिन, रोहिणी नक्षत्र…. परात्पर परब्रह्म सगुण साकार रूप में आये।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म को 5200 से अधिक वर्ष बीत गये लेकिन अब भी जन्माष्टमी हर वर्ष नित्य नवीन रस, नयी उमंग, नया आनंद-उल्लास ले आती है। जिन्होंने अपने उल्लसित स्वभाव का अनुभव किया है, वे काल के घेरे में नहीं बाँधे जाते हैं । कृष्ण थे तब तो उल्लास, आनंद और माधुर्य था लेकिन 5-5 हजार वर्ष बीत गये तब भी आज भी उनकी जन्माष्टमी और उनकी याद उल्लास, आनंद, माधुर्य और रसमय जीवन देने का सामर्थ्य रखती है।
मानो न मानो यह हकीकत है। आनंद, उल्लास, आत्मरस मनुष्य की जरूरत है।।
अगर आपको अंतरात्मा का सुख नहीं मिलेगा तो चाय छोड़कर कॉफी पियेगा, कॉफी छोड़कर और कुछ पियेगा लेकिन पिये बिना नहीं रहेगा। अगर असली मिल जाय तो नकली छूट जाय। इस सिद्धान्त से श्रीकृष्ण ने सबको असली रस की तरफ आकर्षित किया।
जन्माष्टमी व्रत की महिमा
ब्रह्माजी सरस्वती को कहते हैं और भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्त उद्धव को कहते हैं कि ʹʹजो जन्माष्टमी का व्रत रखता है, उसे करोड़ों एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग, शोक, दूर हो जाते हैं।” धर्मराज सावित्री देवी को कहते हैं किः “जन्माष्टमी का व्रत सौ जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाने वाला है।” उपवास से भूख-प्यास आदि कष्ट सहने की आदत पड़ जाती है, जिससे आदमी का संकल्पबल बढ़ जाता है। इन्द्रियों के संयम से संकल्प की सिद्धि होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है जिससे आदमी लौकिक फायदे अच्छी तरह से प्राप्त कर सकता है। जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है। जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है।
‘वायु-पुराण’ में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ – ऐसा भी लिखा है। जो उपवास करता है, जप ध्यान करके उत्सव मना कर फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियाँ तार लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पानी में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेहवाले या कमजोर लोग भी व्रत रखें। बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें।
जन्माष्टमी के दिन किया जप अनंत गुना फल देता है। उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है । जिसको क्लीं कृष्णाय नमः। मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती। ‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख शांति और प्राणी वर्ग को रोग रहित जीवन देने वाला, अकाल मृत्यु को टालने वाला, गर्भपात के कष्टों से बचाने वाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगाने वाला होता है।
इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें। बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें।
अकाल मृत्यु व गर्भपात से करे रक्षा
ʹभविष्य पुराणʹ में लिखा है कि ʹजन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है। जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता। बच्चा ठीक से पेट में रह सकता है और ठीक समय पर बालक का जन्म होता है।ʹ
पुण्य के साथ दिलाये स्वास्थ्य लाभ
जन्माष्टमी के दिनों में मिलने वाला पंजीरी का प्रसाद वायुनाशक होता है। उसमें अजवायन, जीरा व गुड़ पड़ता है। इस मौसम में वायु की प्रधानता है तो पंजीरी खाने खिलाने का उत्सव आ गया। यह मौसम मंदाग्नि का भी है। उपवास रखने से मंदाग्नि दूर होगी और शरीर में जो अनावश्यक द्रव्य पड़े हैं, उपवास करने से वे खिंचकर जठर में आ के स्वाहा हो जायेंगे, शारीरिक स्वास्थ्य मिलेगा। तो पंजीरी खाने से वायु का प्रभाव दूर होगा और व्रत रखने से चित्त में भगवदीय आनंद, भगवदीय प्रसन्नता उभरेगी तथा भगवान का ज्ञान देने वाले गुरु मिलेंगे तो ज्ञान में स्थिति भी होगी। अपनी संस्कृति के एक-एक त्यौहार और एक-एक खानपान में ऐसी सुंदर व्यवस्था है कि आपका शरीर स्वस्थ रहे, मन प्रसन्न रहे और बुद्धि में बुद्धिदाता का ज्ञान छलकता जाय। जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जब अनंत गुना फल देता है। उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जब-ध्यान का विशेष महत्त्व है।