चैत्र नूतन वर्ष मंगलमय हो
भारतीयों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अत्यंत शुभ होता है। इस दिन भगवान ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना हुई तथा युगों में प्रथम सतयुग का प्रारम्भ हुआ।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतर संत झूलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्रितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवर का जन्मदिवस, चैत्र नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियों वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी। इस दिन ‘गुड़ी-पड़वा’ भी मनाया जाता है, जिसमें गुड़ी (बांस की ध्वजा) खड़ी करके उस पर वस्त्र, ताम्र-कलश, नीम की पत्तेदार टहनियां तथा शर्करा से बने हार चढ़ाये जाते हैं। गुड़ी उतारने के बाद उस शर्करा के साथ नीम की पत्तियों का भी प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है, जो जीवन में (विशेषकर वसंत ऋतु में) मधुर रस के साथ कड़वे रस की भी आवश्यकता को दर्शाता है।
नूतन संवत्सर प्रारम्भ की वेला में सूर्य भूमध्य रेखा पार कर उत्तरायण होता हैं । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रकृति सर्वत्र माधुर्य बिखेरने लगती है। भारतीय संस्कृति का ये नूतन वर्ष जीवन में नया उत्साह, नयी चेतना व नया आल्हाद जगाता है । वसंत ऋतु का आगमन होने के साथ वातावरण समशीतोष्ण बन जाता है। सुप्तावस्था में पड़े जड़-चेतन तत्व गतिमान हो जाते है। नदियों में स्वच्छ जल का संचार हो जाता है । आकाश नील रंग की गहराइयों में चमकने लगता है। सूर्य-रश्मियों की प्रखरता से खड़ी फसलें परिपक्व होने लगती हैं । किसान नववर्ष एवं नयी फसल के स्वागत में जुट जाते है। पेड़-पौधे नव पल्लव एवं रंग-बिरंगी फूलों के साथ लहराने लगते है । चौराये आम और कटहल नूतन संवत्सर के स्वागत में अपनी सुगंध बिखेरने लगते हैं । सुगंधित वायु के झकोरों से सारा वातावरण सुरभित हो उठता है । कोयल कूकने लगती है । चिड़ियां चहचहाने लगती हैं । इस सुहावने मौसम में कृषिक्षेत्र सुंदर, स्वर्णिम खेती से लहलहा उठता है ।
संवत्सर नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता सुंदर भूमिका बना देती है । इस बाह्य चैतन्यमय प्राकृतिक वातावरण का लाभ लेकर व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में भी उपवास द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ के साथ-साथ जागरण नृत्य-कीर्तन आदि द्वारा भावात्मक एवं आध्यात्मिक जागृति लाने हेतु नूतन वर्ष के प्रथम दिन से ही माँ आद्यशक्ति की उपासना का नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है ।
नूतन वर्ष प्रारम्भ की पावन वेला में हम सब एक-दूसरे को सत्संकल्प द्वारा पोषित करें कि ‘सूर्य का तेज, चन्द्रमा का अमृत, माँ शारदा का ज्ञान, भगवान शिवजी की तपोनिष्ठा, माँ अम्बा का शत्रुदमन-सामर्थ्य व वात्सल्य, दधीचि ऋषि का त्याग, भगवान नारायण की समता, भगवान श्रीरामजी की कर्तव्यनिष्ठा व मर्यादा, भगवान श्रीकृष्ण की नीति व योग, हनुमानजी का निःस्वार्थ सेवाभाव, नानकजी की भगवन्नाम-निष्ठा, पितामह भीष्म एवं महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा, गौमाता की सेवा तथा ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का सत्संग-सानिध्य व कृपाप्रसाद यह सब आपको सुलभ हो ।’ इस शुभ संकल्प द्वारा ‘परस्परं भावयन्तु’ की सद्भावना दृढ़ होगी और इससे पारिवारिक व सामाजिक जीवन में रामराज्य का अवतरण हो सकेगा, इस बात की ओर संकेत करता है यह ‘रामराज्यभिषेक दिवस’ ।
अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें । सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें, मंदिरों आदि में शंखध्वनि करके नववर्ष का प्रारम्भ करें ।