क्या है शौच-विज्ञान का रहस्य
- शौच का अर्थ है शुद्धि। शुद्धि दो प्रकार की होती हैः आंतर शुद्धि और बाह्य शुद्धि।
- बाह्य शुद्धि तो साबुन, उबटन, पानी से होती है और आंतर शुद्धि होती है राग, द्वेष, वासना आदि के अभाव से। जिनकी बाह्य शुद्धि होती है, उनको आंतर शुद्धि करने में सहायता मिलती है।
- पतंजलि महाराज कहते हैं- शौचात् स्वाङ्गजुगुप्सा परैरसंसर्गः।
शौच से अपने अंगों से घृणा होती है और दूसरों से संसर्ग का अभाव होता है। (पातंजलि योगदर्शन, साधनापादः 40)
प्रातर्विधिसंबंधी लाभकारी बातें
- शौच कब जाना और कैसे जाना यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि जिसका पेट ठीक से साफ नहीं होता, उसका सारा दिन खराब जाता है, मन उलझनों की तानाबूनी करता है, भूख नहीं लगती तथा शरीर में कई बीमारियाँ घर कर लेती हैं।
- पूज्य बापू जी कहते हैं कि”प्रातः 5 से 7 बजे के समय बड़ी आँत विशेष रूप से क्रियाशील होती है। जो व्यक्ति इस समय भी सोते रहते हैं या मल-विसर्जन नहीं करते, उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं। अतः प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग कर देना चाहिए।
- उषःपान (प्रातः जल सेवन) के बाद कुछ देर भ्रमण करने से मलत्याग सरलता से होता है ।
- सहजता से मलत्याग न होने पर कुछ लोग जोर लगाकर शौच करते हैं किंतु ऐसा करना ठीक नहीं है ।
- यदि कब्ज रहता हो तो रात को पानी में भिगोकर रखे मुनक्के सुबह उबालकर उसी पानी में मसल लें । बीज निकाल कर मुनक्के खा लें और बचा हुआ पानी पी लें । अथवा रात्रि भोजन के बाद पानी साथ त्रिफला चूर्ण लेने पर भी कब्ज दूर होता है। साधारणतया सादा, हल्का आहार लेने तथा दिन भर में पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहने से कब्ज मिट जाता है ।
- सिर व कान ढ़क जाये ऐसी गोल टोपी पहनके, मौनपूर्वक बैठकर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए । इससे रक्त तथा वायु की गति अधोमुखी हो जाती है, जिससे मल त्याग में सहायता मिलती है और अपवित्र मल के परमाणुओं से शरीर के सिर आदि उत्तम तथा पवित्र अंगों की रक्षा होती है। इस समय दाँत भींचकर रखने से वे मजबूत बनते हैं ।
- शौच व लघुशंका के समय मौन रहना चाहिए।
- मल-विसर्जन के समय बायें पैर पर दबाव रखें । इस प्रयोग से बवासीर रोग नहीं होता ।
- ऋषियों ने कैसी सूक्ष्म खोज की है!पहले के जमाने में लोग ऋषियों के इन निर्देशों का पालन करते थे, इसी कारण निरोग, स्वस्थ, सुखी, प्रसन्न रहकर सौ-सौ साल हँसते खेलते बिता देते थे। आज के लोग तो जाँघों के बल, जैसे कुर्सी पर बैठा जाता है, ऐसे ही कमोड (पाश्चात्य पद्धति का शौचालय) पर बैठकर पेट साफ करते हैं। उनका पेट साफ नहीं होता, इससे नुकसान होता है। उनको पता ही नहीं कि शौच के समय आँतों पर दबाव पड़ना चाहिए, तभी पेट अच्छी तरह से साफ होगा। शौचालय सादा अर्थात् जमीन पर पायदान वाला होना चाहिए। शौच के समय सर्वप्रथम शरीर का वज़न बायें पैर पर अधिक रखें, फिर दायें पैर पर वज़न बढ़ाते-बढ़ाते दोनों पैरों पर समान कर दें। इससे आँतों पर दबाव पड़ेगा एवं उनकी कसरत हो जायेगी और पेट व आँतें ठीक से साफ हो जायेंगी।
- जिस समय नासिका का जो स्वर चलता हो, उस समय तुम्हारे शरीर पर उसी स्वर का प्रभाव होता है। हमारे ऋषियों ने इस विषय में बहुत सुंदर खोज की है। दायाँ स्वर मल-त्याग करने से एवं बायाँ स्वर चलते समय मूत्र त्याग करने से स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है।”
- पैर के पंजों के बल बैठकर पेशाब करने से मधुमेह की बीमारी नहीं होती ।
- भोजन के बाद पेशाब करने से पथरी का डर नहीं रहता ।