ग्रीष्मजन्य व्याधियों के उपाय
सर्वांग दाह :
- शतावरी चूर्ण (२ से ३ ग्राम) अथवा शतावरी कल्प (१चम्मच) दूध में लाकर सुबह खाली पेट लें ।
- आहार में दूध-चावल अथवा दूध-रोटी लें ।
- आश्रम द्वारा निर्मित रसायन चूर्ण तथा आवला चूर्ण का उपयोग करें ।
- दोपहर के समय गुलकंद चबा-चबाकर खायें । इससे प्यास, जलन, घबराहट आदि लक्षण दूर हो जाते है ।
- शीत, मधुर, पित्त व दाहशामक खरबूजे का सेवन भी बहुत लाभदायी है किंतु दृष्टी व शुक्र धातु का क्षय करनेवाले तरबूज का सेवन थोड़ी सावधानी से अल्प मात्रा में ही करना अच्छा है ।
आँखों की जलन :
- रुई का फाहा गुलाबजल में भिगोकर आँखों पर रखे ।
- त्रिफला चूर्ण (३ग्राम) पानी में भिगोकर रखें । २ घंटे बाद कपड़े से छानकर उस पानी से आँखो में छींटें मारें । बचे हुए त्रिफला का पानी के साथ सेवन करें ।
नकसीर फूटना :
- गर्मी के कारण नाक से रक्त आने पर ताज़ा हरा धनिया पीसकर सिर पर लेप करने से तथा इसका २-४ बूँद रस नाक में डालने से शीघ्र ही लाभ होता है ।
- धनिया की जगह दूर्वा का उपयोग विशेष लाभदायी है ।
लूः लक्षण तथा बचाव के उपाय
- गर्मी के दिनों में जो हवा चलती है उसे लू कहते हैं।
लक्षणः
- लू लगने से चेहरा लाल हो जाता है, नब्ज तेज चलने लगती है।
- साँस लेने में कष्ट होता है, त्वचा शुष्क हो जाती है।
- प्यास अधिक लगती है।
- कई बार सिर और गर्दन में पीड़ा होने लगती है।
- कभी-कभी प्राणी मूर्च्छित भी हो जाता है तथा उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
उपायः
- लू चलने के दिनों में पानी अधिक पीना चाहिए। सुबह 700 मि.ली. से सवा लीटर पानी पीने वालों को लू लगने की संभावना नहीं होती।
- घर से बाहर जाते समय कानों को रूमाल से ढँक लेना चाहिए। जब गर्मी अधिक पड़ रही हो तब मोटे, सफेद और ढीले कपड़े पहनने चाहिए।
- दिन में दो बार नहाना चाहिए। एक सफेद प्याज (ऊपर का छिलका हटाकर) हमेशा साथ रखने से लू लगने की संभावना नहीं रहती। प्याज और पुदीना लू लगने के खतरे से रक्षा करते हैं।
- घर से बाहर जाने से पहले पानी या छाछ पीकर निकलने से लू नहीं लगती। नींबू का शरबत पीना हितकर होता है।
- लू व गर्मी से बचने के लिए रोजाना शहतूत खायें। पेट, गुर्दे और पेशाब की जलन शहतूत खाने से दूर होती है। यकृत और आँतों के घाव ठीक होते हैं। नित्य शहतूत खाते रहने से मस्तिष्क को ताकत मिलती है।
- यदि लू लग जाय तो लू का असर दूर करने के लिए कच्चे आम उबालकर उसके रस में पानी मिलाकर घोल बनायें तथा उसमें थोड़ा सेंधा नमक, जीरा, पुदीना डालकर पियें
- थोड़े-थोड़े समय पर गुड़ व भूना हुआ जीरा मिश्रित पानी पियें ।
- आम का पना, इमली अथवा कोकम का शरबत पियें ।
- प्याज़ व पुदीने का उपयोग भी लाभदायी है ।
- लू व गर्मी से बचने के लिए रोजाना शहतूत खायें । इससे पेट तथा पेशाब का जलन दूर होता है । नित्य शहतूत खाने से मस्तिष्क को ताकत मिलती है ।
पैरों का फटना :
- अत्यधिक गर्मी से पैरों की त्वचा फटने लगती है । उस पर अरंडी का तेल या घी लगायें ।
- पैरों के तलुओं में इसे लगाकर काँसे की कटोरी से घिसने से शरीरांतर्गत गर्मी कम हो जाती है तथा आखों को भी आराम मिलता है ।
- पैरों के तलुओं से आँखों का सीधा संबंध है । क्योंकि पैरों के तलुओं से निकलने वाली दो नसें आँखों तक पहुँचती है, जिससे पैरों में जलन होने पर आँखों में भी जलन होने लगती है । इसलिए गर्मियों में प्लास्टिक अथवा रब्बर की चप्पल नहीं पहननी चाहिए ।
पेशाब में जलन :
- तुलसी के जड़ के पासवाली मिट्टी छानकर उसमें पानी मिलायें सूती वस्त्र पर यह मिट्टी लगाकर नाभि के नीचे पेडू पर रखें । पट्टी सूखने पर बदल दें । गीली मिट्टी की ठंडक पेट की गर्मी को खींच लेती है । यह प्रयोग कुछ समय तक लगातार करने से पेशाब की जलन पूर्णतः मिट जाती है ।
- इसके साथ १००मि. ली दूध में ३ से ५ ग्राम शतावरी चूर्ण तथा थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर १ से २ बार लें ।
शीतला (चिकन पॉक्स) :
- गर्मियों में बच्चों को होनेवाली इस बीमारी में ज्वर, सर्दी व खाँसी के साथ पूरे शरीर पर राई जैसी छोटी-छोटी फुंसियाँ निकल आती हैं ।
- शीतला होने की संम्भावना दिखायी देने पर पर्पटादी क्वाथ (परिपाठादि काढ़ा) का उपयोग करें । यह आयुर्वेदिक दवाइयों की दुकान से सहज में मिल सकता है ।
- शीतला निकलने पर ज़ब तक बुखार हो, तब तक बच्चे को नहलाना नहीं चाहिए । आहार में मूँग का पानी का पानी अथवा चावल का पानी दें । सब्जी, रोटी, दूध, फल आदि बिल्कुल न दें । इससे व्याधि गंभीर रूप धारण कर सकती है । फुंसियाँ सूखने पर नीम के पत्ते पानी में उबाल कर उस पानी से बच्चे को नहलायें तथा बचा चूर्ण शरीर पर मलकर ही कपड़े पहनायें
ग्रीष्म के कुछ विशेष प्रयोग
- (१) भुने हुए जौ के सत्तू को शीतल जल में घी व मिश्री के साथ मिलाकर पीने से शारीरिक दुर्बलता, रुक्षता व जलीय अंश की कमी पूरी होती है |
- (२) गुड़ को एक घंटा पानी में भिगोकर पीने से गर्मी के प्रतिकार की क्षमता बढ़ती है |
- (३) कच्चे आम का पना, नींबू-मिश्री शरबत, हरे नारियल का पानी, ताजे फल, ठंडाई, जीरे की शिकंजी, गुलकंद, दूध-चावल की खीर आदि का सेवन सूर्य की अत्यंत उष्ण किरणों से शरीर की रक्षा करता है ।
- (४) हरड़ चूर्ण व गुड़ समभाग मिलाकर लेने से वात व पित्त का प्रकोप नहीं होता ।
- (५) रात का रखा हुआ पानी सूर्योदय से पूर्व पीने से लू लगने की सम्भावना कम हो जात है, बाकी अपनी सावधानी रखना जरूरी हैं
- (६) अम्लपित्त के कारण होनेवाले दाह और प्यास के शमन हेतु आँवला चूर्ण व मिश्री पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है |