ईशान- स्थल की महत्ता
कमरे की पूर्वी दीवाल की लम्बाई का एक तिहाई भाग व उत्तरी दीवाल की लम्बाई का एक तिहाई भाग लेकर जो आयताकार स्थल बनता है, वह ‘ईशान- स्थल” कहलाता है (चित्र देखें) | 12/ 18 के कमरे का ईशान-स्थल 4 * 6 का होगा | खुले भूमिखंड के विषय में भी ऐसे ही समझना चाहिए ।
इस स्थल में तप-साधना की मूर्ति भगवान शिव का वास होता है, इसलिए यह साधना करने के लिए सर्वोत्तम स्थल है । सुख- शांति और कल्याण चाहनेवाले बुद्धिमानों को अपने घर, दुकान या कार्यालय में ईशान- स्थल पर अपने इष्टदेव का, सदगुरु का चित्र लगाकर वहाँ धूप-दीप, मंत्रोच्चार तथा साधना- ध्यान पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख रखकर करना चाहिए। इसका फल उन्हें विशेष सुख-शांति के रूप में मिलता है ।
प्रत्येक कमरे के ईशान-स्थल में भारी ( वजनदार) वस्तुएँ नहीं रखनी चाहिए । इसी प्रकार भूमिखंड के संदर्भ में ईशान तथा पूर्व एवं उत्तर दिशा में खाली भाग अधिक होना चाहिए और इस भाग में अपेक्षाकृत वजन में हलके व् कम ऊँचाईवाले पेड़- पौधे लगाने चाहिए | भूमिखंड के ईशान- स्थल में पीने का पानी रखना तथा भूमिगत पानी की टंकी या ट्युबवेल का होना विशेष लाभदायक है परंतु इस बात का ध्यान रहे कि ईशान कोण से निकलनेवाली सीधी रेखा (विकर्ण या डायगनल) पर टंकी, ट्युबवेल या कुँवा न हो | (चित्र देखें) छत के ऊपर कि टंकी (ओवर हेड टैंक) इस स्थल पर वर्जित हैं | इसे मध्य पश्चिम क्षेत्र में रखना लाभदायक हैं |
विध्यार्थियों के लिए भी ईशान कोण बड़े महत्त्व का है | पूर्व एवं उत्तर दिशाएँ ज्ञानवर्धक दिशाएँ तथा ईशान- स्थल ज्ञानवर्धक स्थल है | जो विद्यार्थी ईशान- स्थल पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा कि ओर मुख करके पढ़ता है उसे ज्ञानार्जन में विशेष सहायता मिलती है | पूर्व की ओर मुख करने से विशेष लाभ होता है |
अध्ययन कक्ष में सद्गुरु तथा महापुरुषों के चित्र लगाने चाहिए, इससे सत्प्रेरणा मिलती है | ईशान स्थल में जूते- चप्पल, कचरा एवं फालतू वस्तुएँ नहीं रखनी चाहिए | इस स्थान पर संडास व रसोए होना अत्यंत हानिकारक है | इस स्थान को स्वच्छ- पवित्र रखना चाहिए एवं टी. वी., रेडियो, टेलिफोन, आदि उपकरण इस स्थल में नहीं रखने चाहिए |
फर्श व छत की ढलान ईशान- स्थल की ओर होना विशेष लाभदायक है | इसी प्रकार पुरे भूमिखंड में भी ईशान-स्थल निचा होना चाहिए | सुख- शांति तथा साधना में अभिवृद्धिकारक ईशान-स्थल का सभीको लाभ उठाना चाहिए |